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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

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डिजिटल युग के गुरु - Digital Yug ke Guru | अभिषेक मिश्रा - Happy Teachers' Day 2025

 डिजिटल युग के गुरु - Digital Yug Ke Guru लेखक: अभिषेक मिश्रा गाँव की चौपालों में, पीपल की छाँव तले, मास्टर जी ज्ञान की बूँदें, बच्चों पर बरसाते। टाट-पट्टी पर बैठकर, शब्दों की नदियाँ बहतीं, गुरु के चरणों में ही, शिक्षा की दुनिया खिलती। काली तख्ती, खड़िया से, अंक और अक्षर जगते, मास्टर जी की डाँट में भी, स्नेह और संस्कार बसते। गुरुकुल की परंपरा, गाँव-गली में खिलती, नैतिकता और धर्म से, जीवन की राहें मिलती। धीरे-धीरे शहर बढ़े, स्कूलों की रौनक आई, चॉक और डस्टर संग, नयी किताबें घर-घर छाई। गुरु की छवि बनी रही, अनुशासन की डोर से, पढ़ाई के संग जुड़ गई, विज्ञान की भोर से। कंप्यूटर ने दस्तक दी, शिक्षा का रूप बदला, ब्लैकबोर्ड की जगह अब, स्क्रीन ने स्थान संभाला। कक्षा में बैठा छात्र अब, माउस से उत्तर देता हैं, गुरु की वाणी पहुँच गई, तकनीक के हर फलक पर।  डिजिटल बोर्ड चमक उठा, प्रोजेक्टर ने रंग दिखाए, एनिमेशन के दृश्य से, कठिन विषय भी समझ में आए। गाँव के मास्टर जी की, वही परंपरा आगे बढ़ी, ज्ञान का दीप जलता रहे, हर युग में राह दिखाए। ऑनलाइन क्लास ने रच दी, शिक्षा की नई कहानी, घर बैठे-बैठे बच्...

याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल - Yaad Aata hai Tumhara Sindoor Tilkit Bhaal - Nagaarjun

याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल - Yaad Aata hai Tumhara Sindoor Tilkit Bhaal घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल! याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल! कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज? कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज? चाहिए किसको नहीं सहयोग? चाहिए किसको नहीं सहवास? कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छ्वास? हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण जिसको डाल दे कोई कहीं भी करेगा वह कभी कुछ न विरोध करेगा वह कुछ नहीं अनुरोध वेदना ही नहीं उसके पास उठेगा फिर कहाँ से निःश्वास मैं न साधारण, सचेतन जंतु यहाँ हाँ-ना किंतु और परंतु यहाँ हर्ष- विषाद -चिंता-क्रोध यहाँ है सुख-दुख का अवबोध यहाँ है प्रत्यक्ष औ’ अनुमान यहाँ स्मृति-विस्मृति सभी के स्थान तभी तो तुम याद आतीं प्राण, हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण! याद आते स्वजन जिनकी स्नेह से भींगी अमृतमय आँख स्मृति-विहंगम को कभी थकने न देंगी पाँख याद आता मुझे अपना वह ‘तरउनी’ ग्राम याद आतीं लीचियाँ, वे आम याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग याद आते धान याद आते कमल, कुमुदिनि और तालमखान याद आते शस्य-श्यामल जनपदों के रूप-गुण-अनुसार ही रखे गए वे ना...

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं -  Naujawaan Log Paijaame Ko Bura Kehte Hain पैंट फट जाए तो क़िस्मत का लिखा कहते हैं अपने अशआ'र में जुमअ को जुमा कहते हैं ऐसे उस्ताद को फ़ख़रुश्शुअरा कहते हैं नज़्म को गिफ़्ट रुबाई को अता कहते हैं शेर वो ख़ुद नहीं कहते हैं चचा कहते हैं आई-एम-एफ़ को समझते हैं मईशत का इलाज लोग अल-कुहल को खाँसी की दवा कहते हैं ये तो चलती नहीं पी-एम की इजाज़त के बग़ैर इस को ऐवान-ए-सदारत की हवा कहते हैं जाने कब इस में हमें आग लगानी पड़ जाए हम सियासत के जनाज़े को चिता कहते हैं जब से बच्चों को पसंद आई हैं हिन्दी फिल्में मुझ को अब्बा नहीं कहते वो पिता कहते हैं मेरी बारी पे हुकूमत ही बदल जाती है अब वज़ारत को ग़ुबारे की हवा कहते हैं लोड-शेडिंग की शिकायत पे दोलत्ती मारे लोग बिजली के मिनिस्टर को गधा कहते हैं भूक तख़्लीक़ का टैलेंट बढ़ा देती है पेट ख़ाली हो तो हम शेर नया कहते हैं - खालिद इरफ़ान इस शायरी की ख़ास बातें समाज पर तंज़ – पहली पंक्तियों में नौजवानों के कपड़ों और रवैये को लेकर शायर ने दिल...

बाग़ी बलिया का सूरज - Baagi Baliya Ka Sooraj | Baliya Balidaan Diwas - Abhishek Mishra

बाग़ी बलिया का सूरज - Baagi Baliya Ka Sooraj Baliya Balidaan Diwas - Abhishek Mishra बलिदान दिवस 1942: युवा कवि ने बलिया की गाथा को अपनी लेखनी में जीवंत किया आज बलिया बलिदान दिवस पर युवा कवि-लेखक अभिषेक मिश्रा ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और बलिया की जनता के अदम्य साहस को अपनी लेखनी में उजागर किया। मंच या समारोह की बजाय उन्होंने शब्दों के माध्यम से इतिहास के वीर संघर्ष को पाठकों के सामने जीवंत किया। कवि ने अपनी नवीन रचना “ बाग़ी बलिया का सूरज ” में नौ दिन तक चले बलिदानी संघर्ष और स्थानीय जनता की वीरता का विस्तृत चित्र प्रस्तुत किया। कविता में छात्रों, किसानों, मजदूरों और माताओं के साहसिक प्रयासों को भावपूर्ण ढंग से दर्शाया गया है। अभिषेक मिश्रा के अनुसार, बलिया की मिट्टी में स्वतंत्रता की भावना इतनी गहरी है कि हर पीढ़ी इसके उज्जवल सूरज से प्रेरणा लेती है। कविता की एक पंक्ति है: “ गरज उठा जो बलिया में, वह बाग़ी बलिया का सूरज था! ” — यह बलिदान और जनता की एकता का प्रतीक है। कवि ने कहा कि युवा लेखकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे इतिहास को केवल याद न रखें, बल्कि उसे अपनी लेखनी के माध्यम से नया...

देशभक्ति हिंदी कविता | Patriotic Poems In Hindi | Independence Day Poems In Hindi

देशभक्ति हिंदी कविता  Patriotic Poems In Hindi रक्त हैं यह वीरों का --> HERE  मिली हमें जो आज़ादी --> HERE हे भारत के राम जगो --> HERE स्वतंत्र दिवस पर हिंदी कवितायेँ --> HERE गणतंत्र दिवस पर हिंदी कवितायेँ --> HERE आज तिरगां फरहराते है --> HERE मेरे भारत में  --> HERE गाँधी जी ! गाँधी जी ! कैसा लगा आपको? --> HERE गगन में लहरता है भगवा हमारा --> HERE था सर्वोपरि निज देश --> HERE आज सिन्धु में ज्वार उठा है --> HERE आए जिस-जिस की हिम्मत हो --> HERE कदम मिलाकर चलना होगा --> HERE  मस्तक नहीं झुकेगा --> HERE  कण्ठ-कण्ठ में एक राग है --> HERE सिंहासन खाली करो कि जनता आती है --> HERE मेरा भारत महान --> HERE पद्मिनी गोरा बादल -- > HERE चन्दन है इस देश की माटी --> HERE यह परम्परा का प्रवाह है --> HERE हार --> HERE आज तिरगां फरहराते है --> HERE THE HEAD THAT WORE --> HERE आज देश की मिट्टी बोल उठी है --> HERE गांव से ग्लोबल तक --> HERE Mera Desh Jal Raha, Koi Nhi Bujhanewala --> HERE Deshbhakti...

गांव से ग्लोबल तक – स्वतंत्रता दिवस विशेष | ग्रामीण भारत से विश्व मंच तक की यात्रा - Gaon Se Global Tak

  गांव से ग्लोबल तक -  Gaon Se Global Tak By Abhishek Mishra भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है। खेत-खलिहान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी महक, बैलगाड़ी की धीमी चाल और लोकगीतों की गूंज — ये सब मिलकर हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान बनाते हैं। लेकिन यह पहचान केवल अतीत की बात नहीं, बल्कि आज भी हमें " गांव से ग्लोबल " की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है। इस स्वतंत्रता दिवस पर, प्रस्तुत है अभिषेक मिश्रा की एक विशेष कविता, जो ग्रामीण भारत के संघर्ष, आज़ादी की लड़ाई और आधुनिक प्रगति की कहानी बयां करती है। कविता: गांव से ग्लोबल तक (स्वतंत्रता दिवस विशेष) धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी, पगडंडी का मीठा गान, बरगद, पीपल, नीम की छाया, झोंपड़ियों में सपनों का मान। बैलगाड़ी की धीमी चाल में, कच्चे आँगन का था सिंगार, हाट-बाज़ार की चहल-पहल में, गूँजते थे लोक-पुकार। पर आई जब गुलामी की आँधी, सूख गए खेतों के गुलाल, माँ के आँचल में लहराते सपने, टूट गए जैसे मिट्टी के लाल। लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें, रोटी आधी, भूख का गाँव, फिर भी भारत–माँ के बेटों ने, प्राण दिए, पर न झुकाया नाम। चंपारण में उठ...

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...