तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या - Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya Azhar Iqbal Ghazal तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या जुदा हुए हैं तो अहद-ए-वफ़ा निभाना क्या बसीत होने लगी शहर-ए-जाँ पे तारीकी खुला हुआ है कहीं पर शराब-ख़ाना क्या खड़े हुए हो मियाँ गुम्बदों के साए में सदाएँ दे के यहाँ पर फ़रेब खाना क्या हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है जुनूँ के वास्ते सहरा ओ आशियाना क्या वो चाँद और किसी आसमाँ पे रौशन है सियाह रात है उस की गली में जाना क्या - अज़हर इक़बाल तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या - Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya Azhar Iqbal Ghazal tumhārī yaad ke dīpak bhī ab jalānā kyā judā hue haiñ to ahd-e-vafā nibhānā kyā basīt hone lagī shahr-e-jāñ pe tārīkī khulā huā hai kahīñ par sharāb-ḳhāna kyā khaḌe hue ho miyāñ gumbadoñ ke saa.e meñ sadā.eñ de ke yahāñ par fareb khānā kyā har ek samt yahāñ vahshatoñ kā maskan hai junūñ ke vāste sahrā o āshiyāna kyā vo chāñd aur kisī āsmāñ pe raushan hai siyāh raat hai us kī galī meñ jaanā kyā
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, एक धनुर्धारी की विद्या मानो चूहा कुतर गया | बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने