Kisi Ke Kahe Par Chalna Mujhe Manzoor Nahin - Harishankar Parsai Ji Ki Hindi Kavita हरिशंकर परसाई की हिंदी कविता किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको ले निराला मार्ग उस पर सींच जल कांटे उगाता और उनको रौंदता हर कदम मैं आगे बढ़ाता शूल से है प्यार मुझको, फूल पर कैसे चलूं मैं? बांध बाती में हृदय की आग चुप जलता रहे जो और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता प्रलय की ज्वाला लिए हूं, दीप बन कैसे जलूं मैं? जग दिखाता है मुझे रे राह मंदिर और मठ की एक प्रतिमा में जहां विश्वास की हर सांस अटकी चाहता हूँ भावना की भेंट मैं कर दूं अभी तो सोच लूँ पाषान में भी प्राण जागेंगे कभी तो पर स्वयं भगवान हूँ, इस सत्य को कैसे छलूं मैं? - हरिशंकर परसाई Kisi Ke Kahe Par Chalna - Harishankar Parsai Ji Ki Hindi Kavita Kisi ke kahe par chalna mujhe manzoor nahin, Na hi mujhe chahiye kisi padchinh ki zameen. Main alag rasta chunta hoon, kaanton se bhara, Unhein seenchta hoon aur fir raundta...
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...