पुरानी लखनऊ के उन गलियों में - Purani Lucknow Ke Unn Galiyon Mein | Harsh Nath Jha पुरानी लखनऊ के उन गलियों में मुझे दुकानें बेशुमार दिखे पहनावा, खाना, फैशन, मज़हब, मुझे खानदानी व्यापार दिखे। उन पतली पगडंडियों पे चलकर, पुराने आशिक़ हज़ार दिखे टुंडे-कबाबी, पान-गिलौरी मुझे खानदानी व्यापार दिखे। गुलाबी शामें, कुल्हड़ की चाय दुकानों पे हलचल, बहार दिखा दिखा लहज़ा, दिखी तहज़ीब मुझे खानदानी व्यापार दिखा। पैसे की गमक, औ' दशकों की मेहनत वफादारी का कारोबार दिखा पुरानी लखनऊ की उस शाम में मुझे खानदानी व्यापार दिखे। - हर्ष नाथ झा
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, एक धनुर्धारी की विद्या मानो चूहा कुतर गया | बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने